।।राम राम।।
कुंभस्थान : पंपा सरोवर, सुबीर, जि. डांग, गूजराथ.हार्दिक निमंत्रण
श्री शबरीकुंभ - 2006
माघ पौर्णिमा विक्रम सं. 2062, 11,12,13 फेब्रुवारी, 2006श्री शबरीधाम
कुंभ कार्यालय
श्री. शबरीकुंभ समारोह समिती
1, जीवन विकास सोसायटी, आदर्श सोसा. के पास, अठवालाइन्स, सूरत - 395 001. गूजराथ.
दूरभाष : 0261-2664074
श्री शबरीकुंभ - 2006
पितृआज्ञा का पालन करने हेतु भगवान राम वनवासी बने। दंडकारण्य स्थित पंचवटी में आकर रावण ने सीतामाता का अपहरण किया। सीताजी की खोज में निकले श्रीराम और लक्ष्मण एक दिन माता शबरी की झोंपडी पर पधारे। वर्षो से भगवान राम केआगमन की प्रतिक्षा कर रही शबरीमाता के घर में जैसे स्वर्ण-सूर्योदय हुआ।शबरीमाता ने अपने हर्षाश्रु से प्रभु चरणों का अभिषेक किया। प्रभु श्रीराम के आगमन और शबरीमाता की भक्ति से यह भूमि धन्य हो गई। यह प्रसंग श्री रामचरित मानस के 'अरण्यकांड' में है। श्री तुलसीदासजी स्वयं इसका वर्णन करते हुये कहते है...ताहि देइ गति राम उदारा। शबरी के आश्रम पगु धारा।
शबरी देखि राम गृह आए। मुनि के बचन समुझि जियँ भाए।।
इस पवित्र स्थान अर्थात शबरीधाम पर निर्मित भव्य मन्दिर में शरद पूर्णिमा 2004 को माता शबरी और श्रीराम - लक्ष्मण की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गयी।
शरद पूर्णिमा शबरी माता का जन्मदिन है। इस दिन, प्रतिवर्ष शबरीधाम में मेला लगतदा है। वसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी) इस भूमी पर भगवान श्री राम के पदार्पण का शुभ दिन है। इन दिनों श्रीराम-लक्ष्मण आगमन यात्रा अति उत्साह से गाँव में भ्रमणकर अंत में शबरीधाम पहुँचती है।
लाखों वर्षो के बाद सन् 2002 में इसी पवित्र धाम में नवनासी बन्धुओं ने पूज्य मुरारीबापु के श्रीमुख से रामकथा का रसपान किया। कथा के दौरान पूज्य मुरारीबापु ने सहज भाव से 'कुंभ' आयोजन का आव्हान किया, जिसका सबने सहर्ष स्वीकार किया। यहाँ के बन्धुयोँ ने 'श्री शबरीकुंभ' को भव्य स्वरूप में मनाने का सामुहिक संकल्प किया और श्री शबरीकुंभ की घोषणा की गई।
कुंभ, हिन्दू समाज की सांस्कृतिक परंपरा है। इस निमित्त अकत्र होने वाले सभी पूज्य साधु-संत विविध विषयों पर विचार-विमर्ष कर समाज कामर्गदर्शन करते है। जिस प्रकार शरीर की सभी नाड़िरयों के रक्त प्रवाह का हृदय में मिलन होता हे, अशुध्द
रक्त होकर शरीर को नवचैतन्य देता है सी प्रकार इस सबरीकुंभ से धर्मजागरण और धर्मरक्षा का संदेश लेकर सब राष्ट्रचेतना जागृत करेंगे।
शबरीमाता के गुरू मातंग ऋषि और अन्य ऋषिगण जहाँ स्नान करते थे उस पवित्र 'चंपा सरोवर' के किनारे श्री शबरीकुंभ संवत् 2062 साघ पूर्णिमा (11,12,13 फरवरी 2006) के दिन आयोजित किया गया है।
रावणरूपी आसुरी शक्ति का प्रभु श्री रामचन्द्रजीने संहार किया। वर्तमान समय में अपने हिन्दू समाज को तोड़ने के लिये सक्रिय आसुरी शक्तियों को पहचानकर उन्हे पराजित करने का श्री शबरीकुंभ सबको आह्वान करता है।
श्री शबरीकुंभ के निमित्त पवित्र स्नान, कुंभ पूजन, भजन-सत्संग तथा धर्मसभा का आयोजन किया गया है। सभी धर्मप्रेमी हिन्दू भाई-बहनों को श्री शबरीकुंभ में सहभागी होने हेतु श्री बरीकुंभ समारोह आयोजन समिति आमन्त्रित करती है।
डांग अर्थात दंडकारण्य
भारत की पश्चिमी और गुजरात-महाराष्ट्र की दक्षिण-उत्तरी सीमा पर गुजरात का डांग जिला है। गुजरात के वलसाड, नवसारी, सूरत आदि जिलों और महाराष्ट्र के नाशिक, नंदुरबार, धुले आदि जिलों का निकटवर्ती यह पहाडी क्षेत्र अत्यंत मनोरम्य और सदा हरा-भरा रहता है। प्रकृति के मानों चारो हाथ सिर पर होने से यह समग्र प्रदेश पर्यावरण से समृध्द है।डांग जिले का क्षेत्र पुरातनकाल से दंडकारण्य के नाम से जाना जाता है। महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण के अरण्यकांड में उल्लिखित पंचवटी से दक्षिण-पश्चिम में स्थित 'दंडकारण्य' यही भूणि है। जिला केन्द्र आहवा स्थित दंडकेश्वर महादेव का मन्दिर इसका परिचय देता है। डांग यह एक धर्मभूमि है। इस श्रेत्र के विभिन्न धार्मिक स्थानों पर आज भी लाखों बक्तगण समय-समय पर एकत्र होते हैं।
डांग की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक पहचान रामायण काल तक जाती है। जिले में स्थित अनेक तीर्थस्थान इसका प्रमाण है। अतः उनमें से कुछ की संक्षिप्त रजानकारी प्राप्त करें जिससे क्षेत्र के प्रवास का आनन्द प्राप्त हो सकेगा।
शबरीधाम - आहवा से 35 कि.मी. दूर यह धाम सुबीर गाँव के पास हे। 'चमक डोंगर' नाम से प्रसिध्द पहाड़ी पर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण की शबरीमाता से भेंट हुई थी, ऐसी स्थानीय मान्यता है। जिस शिला पर भगवान राम और लक्ष्मण बैठे थे वे दो शिलायें आज भी वहाँ दर्शनीय है। कितने ही वर्षो से धर्माभिमानी वनवासी समाज उनकी बड़ी भक्तिबावना से पूजा करता है। वाल्मीकि रामायण में यह उल्लेख है कि प्रभू श्री रामचन्द्रजी के दर्न के पश्चात शबरीमाता ने योगाग्न से अपनी जीवनलीला पूर्ण कर दी। इस योगाग्नि के प्रकाश से यह पर्वत और सारा क्षेत्र प्रकाशित हो उठा। संबवतः इसीलिए इस पहाडी को 'चमक-डोंगर' नाम से सब जानने लगे, ऐसी भी एक मान्यता है।
शबरीधाम एक पवित्र स्थान है जहाँ वर्ष भर विविध धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। रजो समाज को जागृत करतें है। प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा के दिन यहाँ मेला लगता है। कुंभ पर्व हेतु शबरीधाम का विकास हो रहा है।
पंपा सरोवर - शबरीधाम से 6 कि.मी. दूर स्थित पंपासरोवर अर्थात शबरीकुंभ का स्थान। यहाँ भी पूर्णा नदी प्रवाहित है। जो पुरातन समय में 'पुष्करिणी' के नाम से जानी जाने की संभावना है। पंपा सरोवर के किनारे विशाल संख्या में सुगन्धित पुष्पों के वृक्ष है। रामायण में करंज पुष्प का वर्णन है। पंपा सरोवर के पास के 'करंजडा' गाँव का नाम संभवतः इन्ही पुष्पो के कारण पड़ा होगा। माता शबरी के गुरू मातंग ऋषि का आश्रम जहाँ था, ऐसा मातंग पर्वत भी पंपा सरोवर के पास ही है।
उनाई - समग्र भारत में 'घर वापसी' का संदेश देने वाला यह स्थान स्थानीय समाज के आस्था को केन्द्र है। इस स्थान पर गरम पानी का कुंड एवं उनाई माता का भव्य मन्दिर है। रामायण काल में ऋषि मातंग के स्वाथ्य लाभ हेतु श्रीराम ने अपनी मन्त्रशक्ति से शरसंधान कर पानी का प्रवाह उत्पन्न किया। आज भी इस गरम पानी के कुंड में स्नान कर अनेक लोग रोगमुक्त होते है। आहवा से 65 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह स्थान श्रध्दा की त्रिवेणी समान है।
अंजनकुंड - शबरीधाम से 51 कि.मी. दूर पर्वतमाला में स्थित यह कुंड हनुमानजी की माता अंजनीदेवी के नाम से प्रसिध्द है। अंजनीदेवी ने इस कुंड में स्नान किया था और हनुमानजी का जन्म भी इन्ही पर्वतों की गुफा में हुआ था ऐसी एक जनश्रुति है।
रामायण में सुग्रिव के निवास का जो वर्णन है उसके अनुरूप गुफायेंयहाँ के पर्वतों में हैं। नीचे पवितिरकुंड है। लक्ष्मणजी ने अपने तीर को एक पत्थर पर धिसकर उसे धारदार बनाया था, उसका निशान भी वहाँ है। हनुमानजी सीतामाता की खोज में निकले तब, जिस मार्ग से चारण जाते हैं वह मार्ग चुना था। आज भी चारण समाज उस क्षेत्र के पास ही केविस्तार में निवास करता है जो इस मान्यता की पुष्टि करता है। इस अंजनकुंड तक जाने का मार्ग दुर्गम है परंतु एक बार वहाँ पहुँचने के बाद का अनुभव चिरस्मरणीय है।